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Tuesday, January 19, 2010

स्वप्न

स्वप्न
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स्वप्न से साक्षात्कार
बार-बार
देता है
लक्ष्यों को आधार
कभी मनोरंजन,
हास परिहास का बहाना
कभी बनता है,
क्रांति का ठिकाना
वो स्वप्न ही है
जिसने दिया जन्म
सह्रसों आविष्कारों को
सुख और दुख से इतर
स्वप्न का विशाल संसार है...
अंतर दिन रात का
झोपड़ी महल का
चौक और द्वार का
खेत का खलिहान
कल कारखानों का
हाट का दुकान का..
हार, जीत के द्वंद से इतर
बुनते रहे जाल
स्वप्न का
स्वप्न सर्जक है श्रष्टि का
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इसिलिए कहता हूं स्वप्न देखना अनवरत जारी रखें....
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राधेश्याम दीक्षित

1 comment:

सुबोध said...

वाह बहुत दिनों बाद अपनी रौ में दिखे...वरना अब ये कवि ये आवाज ये धार तो कहीं खोई सी दिखती है...ग्रेट