Sunday, March 30, 2008
तुम मैं और हम
मैं , अहम का शब्द है। जबकि तुम संवाद क़ायम करने की आवश्यक शर्त। हम में सभी को समेटने की ताकत । इन सभी शब्दों की यह सामाजिक समझ है, जिसको हम सभी आमतौर पर मानते हैं , इतना ही नहीं एक फिल्मकार को इन शब्दों ने इतना प्रभावित कर दिया कि उसने इसे बिम्बों के ज़रिये अभिव्यक्त करने का बीड़ा ही उठा लिया। पर क्या इन तीन शब्दों का अस्तीत्व केवल शब्द होने तक ही सिमित है, नहीं एसा नहीं है, मैं कहता हूँ , कि इन्हीं तीन शब्दों ने दुनिया में तमाम झंझावातों को जन्म दिया है। हम सबका भी एसा ही मानना हो सकता है, जिनमें शायद सारे तुम शामिल हों ।पर क्या ये सब समझते हुए भी हम इन शब्दों के मनोविज्ञान से ख़ुद को अभी तक जोड़ पाये हैं। नहीं अभी तक नहीं , और शायद इस बाजारू दुनिया में जोड़ भी नहीं पायेंगे।
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