Thursday, July 10, 2008
परमाणु उर्जा और आम आदमी
पिछले चार साल का साझा तानाबाना टूट गया..करार ने आदमी के सरोकारों के सभी बंधन तोड़ डाले..देश की कुल आबादी के हितों की बली चढ़ा दी गई। और महज कुछ महीनों की सत्ता का सुख भोगने के लिए दिनरात जोड़तोड़ की कवायद जोरों पर है। इन सब के बीच हरदम हाशिये पर रहने वाला आम आदमी ये नहीं समझ पा रहा कि अमरीका ,जो हरदम भारत के ख़िलाफ पड़ोसी मुल्कों को पिछवाड़े से उकसाता रहा है..(साथ ही आर्थिक, सामरिक, कूटनीतिक सहयोग भी) करता रहा है..आचानक जाते हुए राष्ट्रपति ने कौन सी घुट्टी पी ली है..जो सब भुलाकर भारत का हितैषी बन गया है एक बहुत छोटा सा सवाल किसी ने मुझसे पूछ लिया कि ..भैय्या जब भारत को अपनी उर्जा जरूरतों के लिए क़रार करना ही है ..तो केवल अमेरिका के पीछे ही काहे पड़े हो..उससे भी बड़े सप्लायर है..न्यूकिलियर सप्लायर ग्रुप में उनसे काहे करार नहीं करते ..सवाल तो बड़ा छोटा है लेकिन मुद्दे को गंभीर बनाता है..वैसे भी हम भारतीयों की एक आदत जिससे हम मजबूर हैं..वो ये कि जब भी कोई बहस छिड़ जाती है..तो उसमें हम कूद जरूर जाते हैं ..उससे चाहे हमें छटाक भर भी लेना या देना न हो..उस वक्त हमें न तो अपने वक्त का खायाल रहता है..और बहस मुबाहिसे में लगे दूसरे भाई का ...लेकिन एक बात जो काफी अहम है....कि आम आदमी के हितों की आवाज कहीं न दब जाए..जो देश की सरकार को चुनने में सबसे ज्यादा भागीदार होता है(ये आंकड़े बताते हैं कि 50 से 60 फीसदी मतदान में सबसे बड़ा हिस्सा गांवो और कस्बों और शहर के निम्न मध्यम वर्गों से आता है) उसके टुने हुए प्रतिनिधियों को ये बारबार याद दिलाने की जरूरत है कि भाई उसका तो ख़याल करो जिसने तुम्हें अपना ख़ुदा बना दिया.
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