NEW EXPERIENCE

Friday, August 8, 2008

सवालो से मुलाकात....

रातों में बातों से मुलाकात होती है
जाने कितने सवालों से बेबाक होती है
मैं मैं नही रहता
अनजान डर से हालत ख़राब होती है
अब ख़ुद से मुख़ातिब होना जो छोड़ दिया है मैने
बाजार से जज्बातों का रिश्ता बना लिया है
जाने जिन्दगी में कितना जंजाल फैला लिया है
पहले जो सवाल मेरे हमसाया थे
जिन्दगी की सिल पर लोढ़े की मानिन्द
जिनकी कसौटी पर तौल होती थी
छोड़कर दामन सच का
अन्दर ही अन्दर कशमकश होती है
वेचैनी के सिवा बस बेबसी होती है
सवालों से तो छूट जाता हूं
पर जवाबों के कटघरे में पेशगी होती है
आजकल ख़ुद से मेरी मुलाकात होती है
मिलता हूं पुरसुकूं फुर्सत से
सोचता हूं , ये क्या वही मंजिल है
बढ़ाया था कदम मैने जिसके लिए
दिन से अधिक अब
राते रौशन होने लगी हैं
मेरे घर में मेरे साथ रोज
सवालों से मुलाकात होने लगी है

5 comments:

Pravin chandra roy said...

प्रिय मित्र ,
बहुत खूब ...... लेकिन आप यह क्यों भूल गये की ये सवाल अगर हमारी जिंदगी में न हो तब हमारी जिंदगी बेनाम से सुरु होकर गुमनाम में समाप्त हो जायेगी ....हमारे लिये तमाम जीवन एक साधना की तरह हमेशा संघर्षशीलता में गुजरती है.
तुम्हारा, प्रवीन चन्द्र राय

Anonymous said...

वलववरकेमवमववरकिवरकेवमसवेसमम

Anonymous said...

प्रिय राधेश्याम जी,,
लगे रहिए,,मुकामों में मुकाम पाएंगे..
प्रमोद

सुबोध said...

kavi man machal pada

सुबोध said...
This comment has been removed by the author.